Thursday 21 April 2016

HariOm / Descriptive question For IAS :

HariOm/Descriptive question For IAS :

����Q. वैश्विक राजनीति और भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्राकृतिक तेल का प्रभाव

- हाल के दिनों में तेल सबसे महत्वपूर्ण वस्तुओं में से एक बन गया है. अर्थव्यवस्था का ज्यादातर हिस्सा तेल पर निर्भर करता है और यही वजह है कि भारत समेत प्रत्येक अर्थव्यवस्था के लिए तेल की कीमतें मायने रखती हैं.
भारत, दुनिया में तेल के सबसे बड़े आयतकों में से एक है. अपनी तेल की कुल जरूरतों का करीब 70 फीसदी का यह आयात करता है. इसी कारण तेल की कीमतें भारत को बहुत अधिक प्रभावित करती हैं.
वर्ष 2014 में 47 फीसदी की कमी के बाद वर्ष 2015 में विश्व में कच्चे तेल की कीमतों में 17 फीसदी की गिरावट आई और एक बैरल तेल की कीमत 46.59 अमेरिकी डॉलर हो गई. विशेषज्ञों के अनुमान के अनुसार वर्ष 2016 में एक बैरल तेल की कीमत 30 अमेरिकी डॉलर हो सकती है.

तेल की कीमतों में गिरावट के कारण
• सुन्नी बहुल सउदी अरब और शिया बहुल ईरान के बीच बढ़ता तनाव– ये दुनिया के शीर्ष दो तेल उत्पादक देश हैं और इनके बीच का तनाव को कच्चे तेल की कीमतों की कमी की मुख्य वजह बताया जा रहा है.
• बड़ा ओवरहैंग जिसने दुनिया भर में भंडारण टैंकों को अतिरिक्त तेल के साथ छोड़ दिया. अमेरिका में घरेलू कच्चे तेल का उत्पादन जुलाई 2015 में 9.6 मिलियन बैरल तक पहुंच गया था. कनाडा ने भी उत्पादन में ऐसी ही तेजी दर्ज की, क्योंकि टार सैंड्स में भारी निवेश के नतीजे मिलने लगे.
• अमेरिका में शेल गैल क्रांति, हाल के वर्षों में कच्चे तेल के आयातों पर निर्भरता को कम कर दिया है. इस क्रांति का वैश्विक तेल बाजार के लिए महत्व है क्योंकि अमेरिका दुनिया में उत्पादित तेल का करीब 20 फीसदी खपत करता है.
वैश्विक राजनीति पर प्रभाव
• राजनीतिक पुनर्गठन-वैश्विक शक्ति समीकरण में तेल को केंद्र में रखते हुए सउदी अरब से लेकर रूस तक पेट्रोलियम उत्पादित करने वाले देश अपनी शोहरत और भू–राजनीतिक रसूख दोनों ही खो चुके हैं और यह राजनीतिक क्रम में बड़े फेरबदल के लिए बाध्य करता है.
• ओपेक की प्रासंगिकता-तेल अब दुर्लभ संसाधन नहीं है. भू–राजनीतिक लड़ाई अब संसाधनों तक पहुंच बनाने के लिए नहीं है बल्कि वैश्विक बाजार में साझेदारी पर है. उच्च– लागत उत्पादकों खासकर अमेरिका, को बाहर करने के लिए लगता है कि सउदी अरब वैश्विक बाजारों में तेल की बहुत अधिक आपूर्ति करेगा. इसके अलावा तेल के मामले में सउदी अरब के साथ सहयोग में ईरान की दिलचस्पी कम दिखती है. इसका मतलब है कि ओपेक के पुनर्जीवित होने की संभावना कम है.
• सउदी अरब की भूमिका- वैश्विक तेल बाजार में अब यह स्विंग प्रोड्यूसर नहीं रह गया है. यह पूरी शक्ति के अनुसार भले ही उत्पादन कर रहा हो फिर भी तेल की कीमतें गिरी हैं. अतीत में, सउदी अरब की संतुलन बनाने वाली भूमिका का मतलब था कम– लागत और उच्च– लागत वाले उत्पादक दोनों ही बाजार में ऊंचे मूल्य पर आपूर्ति करेंगे जो सभी उत्पादकों के लिए आमदनी की गारंटी होगी.
• अमेरिका की भूमिका- अगर देश की घरेलू शेल उद्योग कम कीमतों पर उत्पादन करने में सफल रहीं, तो अमेरिका तेल एवं गैस के मामले में आत्मनिर्भर होगा. मध्य–पूर्व में स्थिरता की गारंटी में इसकी रूची कम हो सकती है जिससे भू–राजनीतिक तनाव बढ़ सकता है.

भारत को लाभ
दुनिया के प्रमुख तेल आयातक देश के तौर पर भारत में विश्व बाजार में तेल की कीमतों में होने वाली कमी से निम्नलिखित लाभ होंगे.
• चालू खाता शेष-भारत, कच्चे तेल का सबसे बड़ा आयातक है.कच्चे तेल की कीमतों में कमी होने से बिलियनों डॉलर की बचत कर पा रहा है. कीमतों में कमी आयात शुल्क में कमी कर देता है. यह भारत के चालू खाता घाटा को कम करने में मदद करता है.
• मुद्रास्फीति- तेल की कीमतें पूरी अर्थव्यवस्था को प्रभावित करती है, खासकर वस्तुओं एवं सेवाओं के परिवहन में इसके इस्तेमाल के कारण. तेल की कीमतों में कमी पेट्रोलियम के सभी उत्पादों जैसे टायर, पेंट आदि की कीमतों में कमी लाता है. कम इनपुट लागतों की वजह से यह कई उद्योगों को भी लाभ पहुंचाता है.
• तेल सब्सिडी और राजकोषीय घाटा- सरकार रियायती दर पर ईंधन की कीमत तय करती है जो बाजार मूल्य के सापेक्ष होता है. इसलिए तेल की कीमतों में कमी सब्सिडी के तौर पर सरकारी कोष का तेल विपणन कंपनियों को होने वाले हस्तांतरण में कमी लाती है और इस प्रकार राजकोषीय घाटा कम होता है.
• 2015– 16 के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, 2015– 16 में कच्चे तेल की कीमतों में हुई वैश्विक कमी ने पेट्रोलियम सब्सिडी बिल को 30000 करोड़ रुपयों तक सीमित करने में मुख्य भूमिका निभाई. साल 2014–15 में यह सब्सिडी 57769 करोड़ रुपयों की थी.
• रुपया विनिमय दर-तेल की कम कीमतों का अर्थ है भारतीय रुपयों के लिए अनुकूल विनिमय दर क्योंकि इससे संरक्षित मुद्राओं जैसे डॉलर आदि पर तेल भुगतानों के लिए निर्भरता कम हो जाती है.
• हालांकि, इसका नकारात्मक पक्ष यह भी है कि जब भी तेल की कीमतें गिरीं हैं, डॉलर की कीमतों में इजाफा हो गया है. इसकी वजह से भारत को तेल की कीमतों के कम होने से कुछ खास लाभ नहीं हुआ है क्योंकि यह दुनिया का प्रमुख सेवा निर्यातक देश है.
• आर्थिक सर्वेक्षण 2015– 16 के अनुसार भारत ने साल 2014 में 155.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य की सेवाओं का निर्यात किया और देश को दुनिया का आठवां सबसे बड़ा सेवा निर्यातक देश बनाया.

भारत के लिए नकारात्मक पहलू
तेल की कीमतों में विश्व स्तर पर हुई गिरावट भारत के लिए लाभकारी हो सकती है लेकिन इसके कुछ नकारात्मक पहलू भी हैं–
• पेट्रोलियम उत्पादक- यह देश में पेट्रोलियम उत्पादकों के निर्यातकों को प्रभावित करता है. भारत दुनिया में पेट्रोलियम उत्पादों का छठा सबसे बड़ा निर्यातक है. तेल की कीमतों में किसी भी प्रकार की गिरावट निर्यात को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है.
• इसके अलावा भारत के निर्यातों के कई व्यापार भागीदार और खरीददार शुद्ध तेल के निर्यातक हैं. तेल की कीमतों में गिरावट उनकी अर्थव्यवस्था पर प्रभाव डाल सकती है औऱ भारतीय उत्पादों के लिए उनकी मांग को कम कर सकती है.
• प्रेषित धन-विश्व बैंक के माइग्रेशन एंड डेवलपमेंट ब्रीफ 2015 के अनुसार 72 बिलियन अमेरिकी डॉलर के साथ भारत दुनिया का सबसे बड़ा प्रेषित धन का प्राप्तकर्ता है. इस धनराशि का बहुत बड़ा हिस्सा खाड़ी देशों में रहने वाले भारतीयों से मिलता है.
• तेल की कीमतों में किसी भी प्रकार की गिरावट जीसीसी के आर्थिक पहलुओं को प्रतिकूल तरीके से प्रभावित करता है और इस प्रकार, चालू खाता घाटा (सीएडी) को वित्त पोषित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली भारत को भेजी जाने वाली प्रेषित धनराशि को भी.

विश्व के लिए परिणाम
• राजस्व में कमी- तेल निर्यात राजस्वों में प्रमुख कमी रूस, सउदी अरब और वेनेजुएला जैसे देशों को सार्वजनिक खर्चों में कटौती करने को बाध्य कर सकती है जिसका मानव विकास पर दीर्घकालिक असर होगा.
• निवेश में कमी- जब कच्चे तेल की कीमत 100 डॉलर प्रति बैरल से अधिक थी तब आर्टकिट, पश्चिम अफ्रीका और ब्राजील के तट पर खारे चट्टानों की गहराई में जाकर खोजने के लिए निवेश करने का मतलब बनता था.
• कीमतों में गिरावट के बाद हाल के समय में इस प्रवृत्ति में बदलाव हुआ है और साथ ही निवेश में भी. तेल अन्वेषण गतिविधियों में 380 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य की निवेश वाली परियोजनाओं को अभी ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है.
• राजनीतिक व्यवस्था- विश्व में कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट ने वैश्विक राजनीतिक क्रम, जो कभी तेल की उंची कीमतों पर निर्भर करता था, को बदल दिया है. अक्षय ऊर्जा के स्रोतों की प्रबलता के साथ विश्व स्तर पर बढ़ते जलवायु परिवर्तन के साथ भविष्य में तेल की मांग निश्चित रूप से कम होगी.

निष्कर्ष
अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) के अनुसार 2020 तक तेल की कीमतें शायद 50 से 60 डॉलर (अमेरिकी) प्रति बैरल तक न पहुंचे,जबकि इस रुझान का अभिप्राय कुछ लोगों खासकर रूस और वेनेजुएला जैसे निर्यात निर्भर देशों के लिए कठिनाई का आना है, लेकिन चीन और भारत जैसे अन्य देशों के आयात बिल को कम कर यह उनकी मदद कर सकता है.
तेल की कम कीमत वाली व्यवस्था द्वारा मुहैया कराए गए अवसरों को भारत को जब्त कर लेना चाहिए और बाजार को सुधार के चरण में जाने से पहले प्रमुख तेल निर्यातक देशों के साथ दीर्घकालिक रणनीतिक सौदे के लिए मध्यस्थता का प्रयोग करना चाहिए.

For more

www.competition4you2.blogspot.in

https://m.facebook.com/groups/1007054729323105

Facebook.com/pkskmrgreen

#Competition For You

No comments:

Post a Comment